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एक अनजाना पत्र


सुबह 9 बजे मैं अपने ऑफिस पहुंचा ही था की बाहर से वॉचमैन  कर बोला साहब, आपके नाम की चिट्ठी आयी है और लिफाफे  को टेबल पर रख कर चला गया | आज के ज़माने में चिट्ठी कौन लिखता है ? मैंने कौतूहलवश लिफाफे को उठाया और देखने लगा | भेजने वाले की जगह लिखा था - "आपकी प्यारी बेटी2 मिनट के लिए मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गयावातानुकूलित कमरे में भी मुझे पसीना होने लगाक्योकि मेरी तो अभी तक शादी भी नहीं हुई थी | आखिर मैंने अपनी बढ़ी हुई धड़कनो को काबू में किया और काँपते हाथो से चिट्ठी निकाल कर पड़ने लगा |

मेरे प्यारे  पापा...
मैं आपकी "अजन्मी बेटी" भगवान् के घर से आपको यह चिट्ठी लिख रही हु | आशा है आप वहां कुशल होंगे,पापा मै आपसे कुछ कहना चाहती हु , पापा मैं भी आपकी दुनियां में जन्म लेना चाहती हु। ...... मैंने सुना है आपकी दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है। .... मैं भी आपकी खूबसूरत रंगीन दुनिया देखना चाहती हु , ऊँचे पहाड़ , गहरी नदियां, लम्बे मैदान, सुन्दर बाग़ और बगीचे कितना अच्छा लगता होगा  ये सब . ..... मैं भी सूरज को ढलते और चाँद को उगते देखना चाहती हु, तारो की झिलमिलाहट को महसूस करना चाहती हु |
पापामै आपको बहुत सारा प्यार करना चाहती हु , आपके साथ खेलना चाहती हु , अपनी तुतलाती आवाज में पा.. पा ... बोलना चाहती  हु ....आपके कंधो पर बैठ के मेला देखना चाहती हु..ऊँगली पकड़ के चलना चाहती हुआपकी गोदी में सर रख  सोना चाहती हु...आपके हाथो से चॉकलेट खाना चाहती हु और जब बाजार से आओगे तो दौड़ कर आपके गले लगना चाहती हु ,अपनी सारी फरमाइशें आपसे पूरी करवाना चाहती हु | मै चाहती हु की आपकी दुनिया में मेरा भी नाम बने। अपनी पहचान बनाना चाहती हु। ..आसमान में उड़ना चाहती हु , अपने सपनो में रंग भरना चाहती हु.... बहुत सारे सपने है मेरे, बहुत सारी उमंगें हैबहुत सारी इच्छाएं समेटे है ये आपकी छोटी सी जान ...पर पापा में डरती हु मै...सच में...डर लगता है, जब कचरे के ढेर में पड़ी किसी नवजात बेटी को देखती हु ...रूह काँप जाती है जब निर्भया जैसे कांड के बारे में सुनती हु ...सुना है दुनिया  ने बहुत तरक्की कर ली है,समुद्र की गहराई से ले कर अंतरिक्ष की ऊंचाई को माप लिया है, परन्तु फिर भी कुछ लोग आज भी बेटी को बोझ  मानते हैये सच है क्या पापा ..???? और अगर ये सच हैतो मै बोझ नहीं बनना चाहती...मै स्वतंत्र अधिकारों के साथ जीना चाहती हु ...अपना अस्तित्व बनाना चाहती हु, क्या ये संभव है मेरे लिए ?
लिखने के लिए बहुत कुछ है पापा परन्तु अभी बहुत छोटी हु  मै इसलिए मेरे हाथ दुखने लग गए है ...उम्मीद है आप मेरी भावनाओ को जरूर समझेंगे | 
आपके उत्तर की प्रतीक्षा में ....

आपकी प्यारी नन्ही
 "अजन्मी बेटी"


पत्र पढ़ते हुए कब आंखो से आंसू की दो बुँदे लुढ़क पड़ी पता ही नहीं चला | पत्र का एक-एक अक्षर अंतर मन की गहराई को छूने लगा........ 
तभी कही से हल्का हल्का संगीत  सुनाई देने लगा, ओह.......... ये मेरा अलार्म था पास ही पड़ी घडी पर नजर डाली तो सुबह  के 6 बज चुके थे।तो वो पत्र , अजन्मी बेटी, सब कुछ  एक सपना था | मै अपने बिस्तर से ये प्रण ले कर उठा की चाहे वो सपना हो परन्तु में मेरी "अजन्मी बेटी" के पत्र का जवाब जरूर लिखुगा | 


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