रूम न . 204 - बोलते हुए Receptionist ने चाबी मेरे हाथो में थमा दी | दिन भर की थकान के बाद कब नींद आ गयी मुझे पता ही नहीं चला | चहचहाती चिडियो की मधुर आवाज और सूरज की रौशनी कमरे में आयी तो आँख खुली , घडी में सुबह के सात बज रहे थे | आज 1 साल बाद एक बार फिर मैं उसी शहर में था, जहा मैंने अपनी जिंदगी के सबसे हसीं पलो को जिया था , ये शहर मेरी जिंदगी की किताब के उन पन्नो में से था जो गुजरते वक़्त के साथ धुंधले नहीं पड़े थे | मै एक मीटिंग के लिए आया था परन्तु इस शहर से मेरा लगाव , गुजरे हुए दिन और उसकी यादो ने मुझे यहाँ एक दिन ओर रुकने पर मजबूर कर दिया | हाँ , यही वो शहर था जहा मैंने उसके साथ अपनी जिंदगी के सबसे खुशनुमा पलो को साझा किया था , हाथो में हाथ डाले उसके वजूद को महसूस किया था और उसकी आँखों में अपने लिए एक सुनहरे भविष्य की कल्पना की थी | आज भी याद है मुझे जब एक दिन रेस्त्रां में खाने का पहला ...
Written by ANSHUL MOONAT